जानिए कौन से कैलाश पर्वत में होते हैं मणि दर्शन, आज तक कोई भी इस पर्वत पर नहीं चढ़ पाया

Manimahesh Yatra Registration:आज हम पांच कैलाश में से एक कैलाश मणिमहेश के बारे में बताएंगे| मणिमहेश कैलाश पर्वत का रहस्य कोई नहीं जान पाया है| जिसने भी इसे जानने की कोशिश की वह सकुशल  नहीं लौट पाया है चौथे पहर में मणिमहेश कैलाश पर्वत पर चमकने वाली मानी लोगों को यहां चमत्कार होने का वास करवाती है| आज तक कोई भी मणिमहेश पर्वत पर चढ़ पाया है| मणिमहेश पर्वत को अजय पर्वतों में से एक पर्वत माना गया है|

पर्वत रोही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर लिया| लेकिन जब बात मणिमहेश पर्वत की आती है तो सब घुटने टेक जाते हैं नहीं है इस पर्वत पर चढ़ने की किसी ने कोशिश नहीं की कहियो ने शिव के निवास तक पहुंचाने की कोशिश की| लेकिन वह कभी लौट नहीं आए पर ही वह पत्थर बन गए इस संबंध में कोई चर्चित चेक किस हैं चढ़ने की कोशिश की वह या तो पत्थर में तब्दील हो गया या फिर भूस्खलन की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई|

जिन्होंने चढ़ने का सफल प्रयास किया उन्होंने नमस्कार होकर फिर कभी इस फतह करने के बारे में नहीं सोचा पवित्र पर्वत हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा में उपमंडल भरमौर के तहत आता है| जो मणिमहेश कैलाश पर्वत के नाम से बिशप विख्यात है|क्योंकि मणिमहेश कैलाश पर श्रद्धालुओं को मनी के दर्शन होते हैं| इसीलिए इस कैलाश को मणिमहेश कैलाश कहा गया है|

Manimahesh Yatra Registration 2025

मणिमहेश की यात्रा बहुत कठिन मानी जाती है पर्वतारोही भी इस पर्वत को फतह करने से घबरा जाते हैं| पैसा माना जाता है कि भगवान शंकर यहां निवास करते हैं शिवलिंग के आकार की एक भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है अभी तक कोई भी छोटी को चढ़ाने में सक्षम नहीं हो पाया है|

भारत में स्थित हिमालय पर्वत का धार्मिक और पौराणिक के रूप से बहुत ही विशेष स्थान माना गया है| हिमालय पर्वत के लिए भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है कि मैं पर्वतों में हिमालय हूं| मानसरोवर झील के पास स्थित कैलाश पर्वत के अलावा हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के पास स्थित मणिमहेश झील भी भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है|

कैलाश पर्वत के भांति ही मणिमहेश पर्वत के पास भी झील है जिसे महेश कैलाश पीक से कहा जाता है|मणिमहेश झील (समुद्रतल से ऊँचाई 4080 मीटर / 13390 फ़ीट) हिमाचल प्रदेश के कैलाश पीक (समुद्रतल से ऊंचाई 5653 मीटर / 18547 फ़ीट) की तलहटी में स्थित एक प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल है।मणिमहेश यात्रा की पैदल यात्रा 13 किलोमीटर है|

Manimahesh Yatra Registration
Manimahesh Yatra Registration

Manimahesh Yatra 2025 Registration date

भगवान भोले नाथ के पवित्र धाम मणिमहेश में अधिकारिक यात्रा से पहले और बाद में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शुल्क तय कर दिया गया है. इसके तहत प्रति यात्री 100 रूपये एंट्री कम सेनिटेशन फीस के रूप में लिया जाएगा. ईको डेवलपमेंट कमेटी की गुरुवार को हुई बैठक में यह बड़ा फैसला लिया गया है. साथ ही बैठक में यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर सजने वाली छोटी बड़ी दुकानों और होटल-ढाबों को लेकर भी निर्णय लिया है. इस डीएफओ भरमौर माने नवनाथ ने इसकी जानकारी दी|

इसके अलावा बैठक में फैसला लिया गया है कि दुकान अथवा ढाबे के आसपास के क्षेत्र में गंदगी फैलाने पर संबंधित संचालक को पांच हजार रुपये जुर्माना लगाने का निर्णय लिया है|

श्रद्धालु पंजीकरण करवाने के बाद ही यात्रा कर सकेंगे। मणिमहेश यात्रा अधिकारिक तौर पर 26 अगस्त से 11 सितंबर तक होगी, लेकिन इससे पहले भी कई श्रद्धालु मणिमहेश झील में आस्था की डुबकी लगा लेते हैं।इस बार भी श्रद्धालुओं ने मणिमहेश झील की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। मणिमहेश झील में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं के वीडियो इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हो चुके हैं। प्रशासन ने अपील की है कि पंजीकृत श्रद्धालु ही मणिमहेश की ओर रुख करें। इसके लिए प्रशासन ने कड़े कदम उठाने का भी निर्णय लिया है।

मणिमहेश की पौराणिक कथा

मणिमहेश झील के निर्माण से जुड़ी हुई अनेक पौराणिक कथाएं हैं जिनका धार्मिक ग्रंथों  में भी उल्लेख मिलता है| यहां पर सबसे ज्यादा सुनाई जाने वाली पुरानी कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह के बाद मणिमहेश का निर्माण किया था| ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के नाराज होने की वजह से यहां पर हिमस्खलन और भारी बर्फबारी होती है| पौराणिक कथाओं और कई धर्म ग्रंथो में से इस स्थान पर भगवान शिव के द्वारा कई वर्षों तक तपस्या करने का भी उल्लेख किया गया है|

यहाँ रहने वाले गद्दी जनजाति के लोग भगवान शिव को अपने ईष्ट देवता के रूप में पूजते है। गद्दी घाटी में निवास करने वाले लोगों को गद्दी कहा जाता है।धर्म ग्रंथो के अनुसार शिव ने इस पर्वत का खुद निर्माण किया था| मणिमहेश के पास भरमौर में भोलेनाथ के 84 मंदिर हैं| इसीलिए इस जगह का नाम चौरासी  पड़ गया है|

मान्यता है कि इस मंदिर में साक्षात यमराज विराजमान हैं| जिला चंबा के भरमौर इलाके में 84 मंदिर है| इनमें एक मंदिर यमराज का वास है| माना जाता है कि यहां यमराज की अदालत लगती है| यहीं से यह तय होगा कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक जाएगा या नरक लोक मंदिर बाहर से देखने में बिल्कुल आम नजर आता है| यह विश्व का एक ऐसा मंदिर है जहां पर यमराज का मंदिर है|

व्यक्ति की मृत्यु के बाद यमदूत आत्मा को इसी मंदिर यमराज के द्वार पर ले जाता है| इसी मंदिर में यमराज लोगों के पुण्य कर्म और दुष्ट कर्मों का फल देते हैं| तभी इस मंदिर का महत्व बहुत ज्यादा है|

मणिमहेश पर्वत को फतेह न करने के बारे में कहीं रोचक कहानियां प्रचलित हैं| कहा जाता है कि कई 100 वर्ष पूर्व एक गडरिया ने भेड़ों के साथ मणिमहेश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी| लेकिन इससे पहले कि वह पर्वत पर अपनी चढ़ाई पूरी कर पाता वह पत्थर में तब्दील हो गया और उसकी भेड़ों भी|इसी तरह एक कहानी के अनुसार एक कौवे तथा सांप ने भी पर्वत के शिखर पर पहुंचने की कोशिश की। लेकिन, वे भी पत्थर बन गए।

मणिमहेश यात्रा के लिए जरूरी निर्देश

पवित्र श्री मणिमहेश यात्रा के श्रद्धालु 6,680 रुपये में हवाई सेवा के जरिये यात्रा कर सकेंगे। पिछले वर्ष की तुलना में 550 रुपये कम लगेंगे। हेली टैक्सी के दाम कम होने को लेकर खबर प्रमुखता के साथ प्रकाशित की थी। मंगलवार को पवित्र मणिमहेश यात्रा के दौरान हेली सर्विस प्रदाता कंपनियों के टेंडर अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के कार्यालय भरमौर में खोले गए। इसमें हिमालयन हेली टैक्सी सर्विस की तरफ से एक तरफा 3340 रुपये सबसे कम दाम भरे हैं। जबकि, दोनों तरफ के 6680 रुपये किराया रहेगा। इस बार इस प्रकिया में अन्य ओर चार कंपनी ने टेंडर भरे।

मणिमहेश यात्रा में क्या करें

  • यात्रियों से अनुरोध है कि वह अपने साथ मेडिकल सर्टिफिकेट लेकर बेस कैंप हड़सर मैं आवश्यक स्वास्थ्य जांच करवाई यात्रा तभी करें जब आप पूरी तरह स्वस्थ हो|
  • मणिमहेश यात्रा में जाने के लिए पंजीकरण करवाना अनिवार्य है
  • 6 सप्ताह से अधिक की गर्भवती महिलाओं को यात्रा करने नहीं दी जाएगी| सांस फूलने पर वहीं रुक जाएं|
  • अपने साथ छाता रेनकोट गर्म कपड़े गम जूते टॉर्च और छड़ी लेकर आए|
  • यात्रा के दौरान चप्पल की जगह जूते का प्रयोग करें|
  • प्रशासन के द्वारा निर्धारित मार्गो का प्रयोग करें|
  • किसी भी प्रकार की स्वस्थ संबंधित समस्या के लिए नजदीकी कैंप में संपर्क करें|
  • दुर्लभ जड़ी बूटियां और अन्य पौधों के संरक्षण में मदद करें|
  • यात्रा के दौरान को हमेशा अपना पहचान पत्र साथ रखना चाहिए|

मणिमहेश यात्रा में क्या न करें

  • बेस कैंप हड़सर से सुबह 4:00 से पहले और शाम 4:00 के बाद यात्रा न करें|
  • यात्रा बलपूर्वक ना करिए और जूते ना पहने यह घातक हो सकता है|
  • खाली प्लास्टिक की बोतल और रैपर खुले में ना फेक अपने साथ लाएं और कूड़ेदान में डालें|
  • जड़ी बूटियां और दुर्लभ पेड़ पौधों से छेड़छाड़ ना करें|
  • किसी भी प्रकार के मादक द्रव्य का सेवन न करें यह एक धार्मिक यात्रा है इसकी पवित्रता का ध्यान करें|
  • इस यात्रा को पिकनिक या मौज मस्ती के रूप में ना ले केवल भक्ति और विश्वास तीर्थ यात्रा करें|
  • पवित्र मणिमहेश झील के आसपास स्नान के बाद कचरा गीले कपड़े  पास मैं लगे कूड़ेदान में फेंके।
  • किसी भी तरह का शॉर्टकट का इस्तेमाल न करें प्लास्टिक का उपयोग न करें|
  • ऐसा कोई भी काम ना करें जिससे पर्यावरण प्रदूषण हो और पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे|
  • यात्रा के दौरान यदि मौसम खराब हो तो डल झील के बीच धनचो, सुंदरसी, गौरीकुंड और डल झील के बीच किसी सुरक्षित स्थान पर रुकें। यात्रा तभी शुरू करें जब मौसम अनुकूल हो।

Manimahesh Yatra Registration

  • manimahesh yatra 2025 registration करने के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर क्लिक करें|
  • उसके बाद आपको यात्रा पंजीकरण के लिए यहां क्लिक करें|इस तरह का एक लिंक दिखाई देगा
  • उसके बाद अपना नाम ,मोबाइल नंबर, घर का पता, अन्य प्रकार की जानकारी भरिए|
  • उसके बाद रजिस्टर बटन पर क्लिक करें|
  • इस प्रकार आप मणिमहेश यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन और पंजीकरण कर सकते हैं|

मणिमहेश का इतिहास क्या है?

यहां भगवान भोलेनाथ मणि के रूप में दर्शन देते हैं. जिस वजह से झील का नाम मणिमहेश पड़ा

मणिमहेश की यात्रा कैसे करें?

पठानकोट, धर्मशाला, डलहौजी से भरमौर के लिए बसें चलती रहती हैं। इसके अलावा आप खुद की गाड़ी से भी भरमौर तक पहुँच सकते हैं। उसके बाद आपको मणिमहेश तक पहुँचने के लिए 13 किमी. का ट्रेक करना होगा।

मणिमहेश कैलाश के पीछे क्या रहस्य है?

एक स्थानीय मिथक के अनुसार, भगवान शिव को मणिमहेश कैलाश में निवास माना जाता है। इस पर्वत पर शिवलिंग के रूप में एक चट्टान की संरचना को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। 

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