आंध्र प्रदेश के इस मंदिर में है माँ दुर्गा की स्वयंभू प्रतिमा, जानें इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा

कृष्णा नदी के तट पर उपस्थित कनक दुर्गा मां का एक मंदिर बहुत प्राचीन है| इस मंदिर में स्थापित कनक दुर्गा मां की प्रतिमा स्वयंभू है|

महाभारत काल में अर्जुन ने इसी पर्वत माला पर शिव की आराधना की थी और शिव को खुश करके पशुपत अस्त्र प्राप्त किया था। इसलिए इस पर्वत पर कनक दुर्गा मंदिर के बगल में मल्लेश्वर स्वामी यानी शिव का भी मंदिर है। मंदिर के शिखर के आसपास से विजयवाड़ा शहर और कृष्णा नदी के जलाशय का अदभुत नजारा दिखायी देता है।

मंदिर में माता कनक दुर्गा की 4 फीट ऊंची और भव्य और सुंदर आभूषणों से सजी मूर्ति स्थापित है। जिसमें मां के आठ सशस्त्र रूप को दिखाया गया है और महिषासुर के वध को दिखाया गया है.

कनका दुर्गा का नाम इस तथ्य से लिया गया है मंदिर का शीर्ष सोने की बाली सामग्री से बना है| और कनक का अर्थ है सोना है जब आप मंदिर पर चढ़ते हैं तो मुख्य देवता के अलावा आपको देवी काली भगवान शिव भगवान विष्णु के छोटे छोटे मंदिर भी मिलेंगे

इस मंदिर की स्थापना 1749 ई. में टिहार दीपगढ़ रिसायत के राजा गोपीनाथ सिंह मत्तगज ने तत्कालीन जामबनी परगना के चिल्कीगढ़ में अश्रि्वन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी की थी।

राजा गोपीनाथ ने यह मंदिर बनवाया था, जो अनुमानतः 500 वर्ष से भी अधिक पुराना है। राजा को स्वप्न में देवी कनक दुर्गा की मूर्ति दिखाई दी और उन्होंने देवी का मंदिर बनवाया। जैसा कि नाम से पता चलता है कनक, मूर्ति पूरी तरह से सोने से बनी है और इसकी ऊंचाई 2 फीट है।

शक्ति, धन और परोपकार की देवी और विजयवाड़ा की अधिष्ठात्री कनक दुर्गा के मंदिर में "नवरात्रि" उत्सव के दौरान पूजा के लिए लाखों तीर्थयात्रियों की भीड़ उमड़ती है, जिसे धार्मिक उत्साह, धूमधाम और उत्सव के साथ मनाया जाता है।

सुबह 4 बजे से 5.45 तक। इसके बाद सुबह 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक लगातार। मंदिर में तीन तरह के दर्शन हैं। पहला निःशुल्क दर्शन है, जबकि 20 रुपये और 100 रुपये का टोकन दर्शन भी है।

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