इस पौराणिक मंदिर को इतिहास में कई बार तोड़ा गया था, लेकिन हर बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। यह एक ऐसा मंदिर है, जो स्वयं में ना केवल एक समृद्ध इतिहास समेटे हुए है
इस ज्योतिर्लिंग की महिमा श्रीमद्भगवद्गीता, स्कंदपुराण और महाभारत जैसे कई वेद पुराणों में बताई गई है। किवदंतियों के अनुसार भगवान शिव को चंद्रदेव ने अपना स्वामी अर्थात नाथ मानकर तपस्या की थी।
इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ यानि 'चंद्र के स्वामी' के नाम से जाना जाता है/ मान्यता है कि भगवान सोमनाथ के दर्शन करने से और उनकी पूजा करने से भक्तों को जन्म-जन्मांतर के पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही उनके लिए मोक्ष का मार्ग खुल जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर की भव्यता को देखकर आक्रांता मोहम्मद गजनी के मन में लालसा आ गई थी और उसने सन 1025 में मंदिर पर हमला किया था। उसने मंदिर की सारी संपत्ति को लूट लिया और इस स्थान को लगभग नष्ट कर दिया था।
सोमनाथ नाम पड़ने के पीछे कारण यह है कि चंद्रमा का एक नाम सोम भी है इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा
सोमनाथ मंदिर देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराण, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी किया गया है.यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है इसका शिखर 150 फुट ऊंचा है. आश्चर्य की बात है कि शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है
इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया. बताया जाता है सोमनाथ के देवद्वार को महमूद गजनी लूटपाट के बाद अपने साथ ले गया था और आगरा के किले में रखवा दिए थे
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