पंढरपुर के इस मंदिर में भक्त को दर्शन देने के लिए स्वंय प्रकट हुए थे श्रीकृष्ण, यहीं नाम पड़ा था विट्ठल

देवउठानी एकादशी पर हर साल यहां भगवान विट्ठल की यात्रा निकाली जाती है. कहा जाता है कि  विट्ठल की यात्रा यहां पिछले 800 साल से लगातार आयोजित की जा रही है

यहां के मंदिर को पंढरीनाथ, पंढरीराय, विथाई, पांडुरंग, विठुमौली, विठोबा, हरि, विट्ठल गुरुराव, पांडुरंग आदि नामों से भी जाना जाता है। हालांकि, आज यह भगवान श्री विट्ठल और पांडुरंग के नाम से प्रसिद्ध है

चूंकि श्रीकृष्ण को विठोबा भी कहते हैं, इसलिए श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर  विठोबा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है

इस मंदिर में देवी रुक्मिणी को भगवान विट्ठल के साथ स्थापित किया गया है. भगवान विट्ठल को विट्ठोबा, पांडुरंग, पंढरिनाथ के नाम से भी जाना जाता है

कहा जाता है कि छठी सदी में पुंडलिक नाम के एक प्रसिद्ध संत हुआ करते थे, जो अपने माता-पिता के परम भक्त थे|भगवान ने भक्त की आज्ञा का पालन करते हुए कमर पर दोनों हाथ रखकर पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। ईट पर खड़े होने की वजह से उन्हें विट्ठल कहा गया

संत पुंडलिक ने उस विट्ठल रूप को ही अपने घर में पूजने के लिए विराजमान कर दिये। यही आगे चलकर पंढरपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह महाराष्ट्र का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। 

मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। इस मंदिर में भगवान विट्ठल के साथ देवी रुक्मिणी भी मौजूद हैं

श्री विट्ठल रुक्मणी मंदिर में भगवान विष्णु के लिए कई विशेष दर्शन होते हैं यह मंदिर सुबह 4:00 से रात 11:00 तक खुलता है| जो भक्त चरण स्पर्श और अन्य दर्शन चाहते हैं

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