Thirunallar Temple Online Ticket Booking:तिरुनल्लार मंदिर, धारबरण्येश्वर मंदिर भी, भगवान शिव (भगवान श्री धारबरण्येश्वर) का एक प्रसिद्ध निवास है।शनि देव जी प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए भारतवर्ष के श्रद्धालु तिरुनल्लर मंदिर दर्शन करने आते हैं|तिरुनल्लर मंदिर काफी भीड़ होती है| लेकिन मंदिर कमेटी द्वारा तिरुनल्लर मंदिर ऑनलाइन टिकट बुकिंग सुविधा शुरू कर दी है| अब आप घर बैठे Thirunallar Temple Online Ticket Booking करवा सकते हैं|
पांडिचेरी और तमिलनाडु राज्य के भक्तों मुख्य धरोहर Thirunallar मंदिर है| थिरुनल्लार मंदिर थिरुकुदलैयथूर, तमिलनाडु, पांडिचेरी, भारत में स्थित है। ज़ी तमिल नाडु राज्य में नवग्रह मंदिरों का एक प्राचीन स्मारक है|गवान शनि का पवित्र स्थान तिरुनल्लार पांडिचेरी केंद्र शासित प्रदेश के अधिकार क्षेत्र में कराईकल से 5 किलोमीटर दूर स्थित है।। अरसालारू और वांचाई नदियों के बीच आदर्श रूप से स्थित इस मंदिर में पहुंचने पर लोग देशभर और यहां तक की दुनिया के विभिन्न देशों से भी भक्तों की भीड़ देख सकते हैं|
Thirunallar Temple Online Ticket Booking
देश के विभिन्न हिस्सों से तीर्थ यात्री दर्शन करने के लिए रोज आते हैं| इस मंदिर में शिव को धारबरन्येश्वर खत्म के रूप में पूजा जाता है|आगे प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी शनि के दुष्प्रभाव का अनुभव करता है| उनके जीवन में अवधियाँ उच्च तनाव, हानि, मृत्यु और देरी की विशेषता हैं। शनि परागण की अवधि के दौरान कुछ लोगों को महान ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए भी जाना जाता है शनि कर्म का पारदाता है और आमतौर पर शनि परागण की अवधि के दौरान हमारे अनुभव अतीत और पिछले जन्म में हमारे कार्य का प्रत्यक्ष प्रणाम होते हैं|
शनि के बुरे प्रभाव को करने और सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाने के लिए यह सलाह दी जाती है कि सभी लोग भगवान शनिश्वरन की पूजा करें|यदि आपकी कुंडली में शनि स्वामी ग्रह है और कुंडली में शनि अशुभ प्रभाव दे रहा है तो आप तिरुनल्लार मंदिर में भगवान शनि (शनिश्वरन) की पूजा करें।जो लोग शनि महादशा या शनि अशुभ प्रभाव से गुजर रहे हैं| तो आपके लिए तिरुनल्लार मंदिर उसको काम करने के लिए यहां पर पूजा करनी चाहिए| मैं आपके बुरे प्रभाव काम कर देगा|
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, क्षेत्र के शासक ने एक चरवाहे को मंदिर में प्रतिदिन दूध उपलब्ध कराने के लिए कहा। चरवाहा शिव का कट्टर भक्त था और वह खुशी-खुशी मंदिर में पीठासीन देवता के अभिषेक के लिए दूध का कोटा उपलब्ध करा रहा था।
तिरुनल्लार मंदिर विशेष महत्व
- तिरुनल्लार मंदिर जिसे दरबारण्येश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है भगवान शनिश्वरन को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है|
- किसी न किसी बिंदु पर हर इंसान हमारी कुंडली में शनि ग्रह के कारण होने वाली पीड़ा कठिनाइयों और सफलता से गुजरता है तिरुनल्लर सनीस्वरन मंदिर मैं पूजा करके हम राहत पाने की उम्मीद कर सकते हैं|
- शनि के अशुभ प्रभाव के कारण राजा नल को भी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा वह अपना राज्य को देता है अपनी पत्नी से अलग हो जाता है बदसूरत बन में बदल जाता है और गरीबी का जीवन जीता है|
- इसके बाद राजा तिरुनल्लार मंदिर भगवान शनिश्वर पूजा करते हैं और नाला थीर्थम मैं स्नान करते हैं मैं भगवान सनीश्वर प्रसन्न हुए और राजा नल को अपना राज्य, पत्नी और खुशी वापस मिल गई।
- उसे समय से हमारे देश के कोने कोने से लाखों भक्त भगवान शनि द्वारा दिए गए कष्टों से राहत पाने के लिए इस मंदिर में आते हैं|
- मंदिर के प्रवेश द्वार की रक्षा दो द्वार बलाकर कर करते हैं जिनमें चार चार हाथ हैं| मंदिर की पूर्वी के अंत मेंसंत थिरुग्नानसंबंदर की मूर्ति एक सुंदर मंडप में स्थित है।
जानिए तिरुनल्लार मंदिर में कैसी होगी ऑनलाइन बुकिंग
- Thirunallar temple entry ticket booking online ऑफिशल वेबसाइट पर जाकर क्लिक करें|
- आधिकारिक वेबसाइट पर क्लिक करने के बाद आपको दर्शन बुकिंग का लिंक दिखाई देगा|
- उसे लिंक पर जाएं| उसके बाद New User Signup पर क्लिक करें|
- उसके बाद एप्लीकेशन फॉर्म में आपका नाम आपका घर का पूरा एड्रेस पूछा जाएगा|
- उसको भरिए उसके बाद रजिस्टर बटन पर क्लिक करिए|
- इस प्रकार आप घर बैठे ऑनलाइन तिरुनल्लार मंदिर में ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं|
मुझे थिरुनल्लर मंदिर कब जाना चाहिए?
अगर आप शनिवार को मंदिर जाना चाहते हैं तो दोपहर 2 बजे के बाद जाएं जब भीड़ कम हो। मंदिर सभी शनिवारों को सुबह 5.30 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है
थिरुनल्लर मंदिर में क्या खास है?
थिरुनल्लर मंदिर भगवान शनिश्वरन उर्फ शनि को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्रसिद्ध राजा नल ने करवाया था, जिनका मानना था कि शनि के प्रभाव के कारण उनकी सभी बाधाएं दूर हो गई थीं।
थिरुनल्लर मंदिर कितने साल पुराना है?
वर्तमान चिनाई वाली संरचना 9वीं शताब्दी में चोल राजवंश के दौरान बनाई गई थी, जबकि बाद के विस्तार का श्रेय विजयनगर शासकों को दिया जाता है। मंदिर का रखरखाव और प्रबंधन पुडुचेरी सरकार के हिंदू धार्मिक संस्थान विभाग द्वारा किया जाता है।