Putrada Ekadashi Vrat Katha Puja Vidhi:पुत्रदा एकादशी व्रत कथा 2024

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा 2024 PDF:हर महीने में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है|धार्मिक मान्यता है कि  पुत्रदा एकादशी व्रत करने से संतान प्राप्ति और बच्चे की तरक्की से जुड़ी सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलती है।यह व्रत बिना अधूरा कथा पाठ करने से अधूरा माना जाता है|तो आईए जानते हैं पुत्र एकादशी व्रत क्या है और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा 2024 के बारे में

पुत्रदा एकादशी पौष मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। मान्यता है कि यदि संतान सुख से वंचित संपत्ति इस व्रत को करें तो विधि विधान से पूजा करने के बाद व्रत की कथा का पाठ करें तो व्रत का संपूर्ण फल मिलता है और शीघ्र ही उनके घर में खुशहाली आती है लिए आपको बताते हैं पुत्रदा एकादशी के व्रत कथा के विस्तार में|एकादशी तिथि पर विधिपूर्वक भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मत है कि पुत्रदा एकादशी व्रत करने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही यश कीर्ति सुख और समृद्धि में भी वृद्धि होती है। 

Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF

अगर आप भी संतान की प्राप्ति करना चाहते हैं तो पुत्रदा एकादशी का व्रत करें और पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करें इससे सड़क के जीवन में खुशियों का आगमन होगा|भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- राजन्! पौष के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी है, उसे बतलाता हूं सुनो। महाराज! संसार के हित की इच्छा से मैं इसका वर्णन करता हूं। राजन्! पूर्वोक्त विधि से ही यत्‍नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिए। इसका नाम ‘पुत्रदा’ है। यह सब पापों को हरने वाली उत्‍तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान् नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं। चराचर गणियों सहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है।

प्राचीन कथा के अनुसार द्वापर युग की शुरुआत में एक नगरी थी जिसका नाम  महिरूपति था। इस नगरी में महीजित नाम का राजा राज्य किया करता था| लेकिन उसको पुत्र न होने की वजह से राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था पुत्र पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा ने के उपाय किए लेकिन पुत्र सुख प्राप्त नहीं हुआ|एक बार आजा ने सभी ऋषि मुनियों संन्यासी और विद्वानों को बुलाया और उनसे पुत्र प्राप्ति के उपाय पूछे|

सभी ने राजा की समस्या सुनकर कहा कि है राजन तुमने पूर्व जन्म में सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन नाम से एक गाय को जल नहीं पीने दिया था| जिसकी वजह से गाय ने तुम्हें संतान न देने का श्राप दिया था इसकी वजह से तुम पुत्र की प्राप्ति वंचित हो।

इसके पश्चात ऋषि मुनियों ने कहा अगर तुम सावन की एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करोगे तो तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगे| इसके बाद तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी इसके बाद राजा ने सच्चे मन से सावन की एकादशी का व्रत किया इस व्रत के पुण्य से राजा की गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया| धार्मिक मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी व्रत करने को भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मुरादे पूरी होती हैं|

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा :

पूर्वकाल की बात है, भद्रावती पुरी में राजा सुकेतुमान् राज्य करते थे। उनको रानी का नाम चम्पा था। राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ। इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिंता और शोक में डूबे रहते थे। राजा के पितर उनके दिए हुए जल को बड़े ही शोक के साथ पीते थे और सोचते थे, कि राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा’ यह सोच-सोचकर पितर दुःखी रहते थे।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गए। पुरोहित आदि किसी को भी इस बात का पता न था। मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन वन में राजा भ्रमण करने लगे। मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनाई पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की। जहां-तहां रीछ और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे। इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गया। राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे जल की खोज में इधर-उधर दौड़ने लगे। किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे। शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा तो उस समय शुभ की सूचना देने वाले शकुन होने लगे। राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था। सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेद-पाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गए और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। ये मुनि उत्तम व्रत का पालन करने वाले थे। तब राजा ने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न है।

राजा बोले- आप लोग कौन हैं? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहां एकत्रित हुए हैं ? यह सब सच-सच बताइए।

मुनि बोले- राजन् ! हम लोग विश्वेदेव है, यहां स्रान के लिए आए हैं। माघ निकट आया है। आज से पांचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जाएगा। आज ही ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है।

राजा ने कहा – विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्‍न हैं तो मुझे पुत्र दीजिए। मुनि बोले- राजन् ! आज के ही दिन ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। महाराज! भगवान् केशव के प्रसाद से तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा। इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया। महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का अनुष्ठान किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारम्बार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आए। तदनन्तर रानी ने गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओं का पालक हुआ। इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’का उत्तम व्रत ही अवश्य करना चाहिए। मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित होकर ‘पुत्रदा’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात स्वर्गगामी होते है। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है!

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