Masroor Rock Cut Temple:आज हम आपको एक ऐसे ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बताएंगे|इसके इतिहास का अंदाजा कोई नहीं लग पाया है|कुछ कहानियां दंत कथाओं और मंदिर के गर्भ ग्रह में अभी श्री राम माता सीता और लक्ष्मण मेरे साथ विराजमान है|तो आईए जानते हैं इस मंदिर का रहस्य और जानिए यह कहां पड़ता है|
अपनी समृद्ध कृत विरासत के लिए प्रसिद्ध होने के कारण भारत हर बार बड़ी संख्या में पर्यटक को आकर्षित करता है| इस संदीप इतिहास को शीर्ष प्राचीन स्मारक और अद्भुत मंदिरों के माध्यम से उल्लेखनीय से दर्शाया गया है| अगर आप भारत की प्राचीन चर्चाओं की बात करें तो चट्टान को काटकर बनाए गए मंदिर और वास्तुकला इसका सबसे गैतिहासिक और अद्भुत उदाहरण हैं चट्टान को काटकर बनाए गए मंदिर और वास्तुकला भारत और विदेश से आने वाले यात्रियों के लिए आवश्यक देखने योग्य आकर्षणों को में से एक है|
Masroor Rock Cut Temple
आपको एक ऐसे ऐतिहासिक मंदिर बारे में बताएंगे| इसके इतिहास का अंदाजा कोई नहीं लगा पाया है|कुछ कहानिया हैं, दन्त कथाएं और मंदिर के गर्भ गृह में अभी भी श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं।यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसरूर गांव में स्थित है|15 बड़ी चट्टानों पर यह मंदिर बना है जिसे हम रॉक कट टेंपल के नाम से भी जानते हैं|
हिमालयन पिरामिड के नाम से भी मशहूर, मसरूर रॉक कट मंदिर 15 अखंड रॉक-कट स्मारकों का एक परिसर है। उनमें से प्रत्येक को पारंपरिक इंडो आर्यन शैली में उकेरा गया है जो भारत के उत्तरी भाग के लिए बहुत ही खास है। इस मंदिर परिसर के पास एक झील है जिसे मसरूर झील के नाम से जाना जाता है और इस झील में मंदिर का प्रतिबिंब देखा जा सकता है।
Masroor Rock Cut Temple
हिमालय पिरामिड के नाम से विख्यात भी बेजोड़ कला के नमूने रॉक कट टेंपल मसरूर एक अनोखा और रहस्यमई इतिहास समेटे हुए हैं| पुरातत्व विभाग के अनुसार शायद 8वीं सदी में बना यह यह मंदिर उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है| देखा जाए तो पत्थरों पर ऐसी खूबसूरत निकासी करना बेहद मुश्किल काम है| ऐसे में यह कारीगरी करने के लिए दूर से कारीगर ले गए थे लेकिन यह कारीगरी किसने की इसके आज तक पुख्ता सबूत नहीं मिल पाए हैं।
इन्हें अजंता एलोरा का हिमाचल भी कहा जाता है हालांकि यह एलोरा से पुराने हैं| पहाड़ काटकर गर्भ ग्रह मूर्तियां सिद्धियां और दरवाजे बनाए गए हैं|मंदिर के बिल्कुल सामने मसरूर झील है जो मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाती है।
Masroor Rock Cut Temple history in Hindi
झील में मंदिर के कुछ हिस्सों का प्रतिबिंब दिखाई देता है| उत्तर भारत में यह इस तरह का एकलौता मंदिर है| सदियों से चली आ रही दन्त कथाओं के मुताबिक मानता है कि इस मंदिर का निर्माण अपने अज्ञातवास के दौरान किया था और मंदिर के साथ खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपती के लिए बनाया गया था|
स्थानीय लोगों के अनुसार इसे हिमालय का पिरामिड भी कहा जाता है। मंदिर का पूरा परिसर एक विशालकाय चट्टान को काट कर बनाया है। इसे बिल्कुल भी आदर्श रूप से भारतीय स्थापत्य शैली में बनाया गया है जो हमें 6-8वीं शताब्दी में ले जाता है। धौलाधार पर्वत और ब्यास नदी के परिदृश्य में स्थित, यह मंदिर एक सुरम्य पहाड़ी के उच्चतम बिंदू पर स्थित है। वैसे आज तक तो इस मंदिर के निर्माण की कोई ठीक तारीख तो पता चल नहीं पाई है, इसलिए कहा जाता है कि मंदिर को सबसे पहले सन 1875 में खोज निकाला गया था।
मंदिर की दीवार पर ब्रह्मा विष्णु महेश और कार्तिक के के साथ अन्य देवी देवताओं की भी आकृति देखने को मिल जाती है| बलुआ पत्थर को काटकर बनाए गए इस मंदिर को 1905 में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान भी हुआ था। इसके बावजूद यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है| सरकार ने इसे राष्ट्रीय संपत्ति के तहत संरक्षण दिया है मंदिर को सर्वप्रथम 1913 में एक अंग्रेज एचएल स्टलबर्थ ने खोजा था।
देश का एकलौता मंदिर
8वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था तथा समुद्र तल से 2500 फुट की ऊंचाई पर एक ही चट्टान को काट कर बना देश का एकमात्र मंदिर माना जाता है।
स्वर्ग जाने का मार्ग
आज भी विशाल पत्थरों के बने दरवाजानुमा द्वार हैं, जिन्हें ‘स्वर्गद्वार’ के नाम से जाना जाता है। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, पांडव अपने स्वर्गारोहण से पहले इसी स्थान पर ठहरे थे, जिसके लिए यहां स्थित पत्थरनुमा दरवाजों को ‘स्वर्ग जाने का मार्ग’ भी कहा जाता है।
himchal pradesh Masroor Rock Cut Temple
मुख्य मंदिर वस्तुत: एक शिव मंदिर था, पर अभी यहां श्री राम, लक्ष्मण व सीता जी की मूर्तियां स्थापित हैं। एक लोकप्रिय पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इसी जगह पर निवास किया था और इस मंदिर का निर्माण किया। चूंकि यह एक गुप्त निर्वासन स्थल था इसलिए वे अपनी पहचान उजागर होने से पहले ही यह जगह छोड़ कर कहीं और स्थानांतरित हो गए। कहा जाता है कि मंदिर का जो एक अधूरा भाग है उसके पीछे भी यही एक ठोस कारण मौजूद है।
आप मंदिर के अंदर जैसे ही जाएंगे, अंदर की वास्तुकला देख कर दंग रह जाएंगे कि कैसे एक पहाड़ को काट कर इस तरह बनाया जा सकता है। कहीं कोई जोड़ नहीं, कोई सीमैंट नहीं केवल पहाड़ काट कर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढिय़ां और दरवाजे बनाए गए हैं। हालांकि यह शैली पश्चिम और दक्षिण भारत के कई प्राचीन मंदिरों में देखने को मिल जाती है पर भारत के उत्तरी भाग में कुछ अलग और अद्वितीय है। मंदिर की वास्तुकला और बारीकी से की गई नक्काशियां किसी भी इतिहास में रुचि रखने वाले व्यक्ति के लिए एक आदर्श स्थल हैं।
मंदिर के बिल्कुल सामने ही स्थित है मसरूर झील जो मंदिर की खूबसूरती में चार-चांद लगाती है। झील में मंदिर के कुछ अंश का प्रतिबिंब दिखाई देता है जो किसी जादू से कम नहीं दिखता। कहा जाता है कि इस झील को पांडवों ने ही अपनी पत्नी, द्रौपदी के लिए बनवाया था। इस मंदिर को बनाने की अवधारणा ही थी इसे शिव जी को समर्पित मंदिर बनाना। यहां कई ऐसे चौखट हैं जो शिव जी के सम्मान में मनाए जाने वाले त्यौहार के नजारे को दर्शाते हैं और ये नजारे आपको देश में कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे।
पूरा धौलाधार व इसकी हिमाच्छादित चोटियां यहां से स्पष्ट नजर आती हैं। पूरा दृश्य ऐसा लगता है मानो किसी चित्रकार ने बड़ा सा चित्र बनाकर आकाश में लटका दिया हो। पहाड़ को काट कर ही एक सीढ़ी बनाई गई है, जो आपको मंदिर की छत पर ले जाती है और यहां से पूरा गांव एवं धौलाधार की धवल चोटियां कुछ अलग ही नजर आती हैं।