यह प्रतिमा 216 फुट ऊंची है। यह 11वीं सदी के संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है।

यह  प्रतिमा पंचधातु से बनी है। इसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जिंक शामिल हैं।

यह दुनिया में बैठी अवस्था में सबसे ऊंची धातु की प्रतिमाओं में से एक है। यह 54 फुट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है।

1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध हैं।

रामानुजाचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था- ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम

रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। फिर उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया

इस परिसर में संत श्री रामानुजचार्य के कार्यों से जुड़ी लिखित सामग्री, प्राचीन दस्तावेज रखे गए हैं.

इस मूर्ति के साथ-साथ परिसर में 108 दिव्यदेश बनाए गए हैं. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के 108 अवतार माने गए हैं

इस मूर्ति की कल्पना और डिजाइन को श्री रामानुजचार्य आश्रम के स्वामी चिन्ना जीयार द्वारा विकसित किया गया है

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