मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं बल्कि इस चीज की होती है पूजा जानिए जहां पुरुषों को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं है जानिए इस मंदिर का रहस्य
माता कामाख्या देवी मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। भारतवर्ष के लोग इसे अघोरियों और तांत्रिक का गढ़ मानते हैं।
माना जाता है कि कामाख्या मंदिर के पवित्र तालाबों और कुओं में दैवीय शक्तियाँ हैं और भक्तगण उनके शुद्धिकरण गुणों के लिए उनका सम्मान करते हैं
खास तौर पर कुछ अनुष्ठानों और त्योहारों के दौरान। भक्त देवी को अपने धार्मिक प्रसाद के रूप में बकरियों और कबूतरों जैसे जानवरों की बलि चढ़ाते थे।
माना जाता है कि इन भूमिगत मार्गों में प्राचीन रहस्य और छिपे हुए कक्ष हैं जो मंदिर की स्थापना के समय से ही मौजूद हैं। गुफाओं का भूलभुलैया नेटवर्क मंदिर की रहस्यमय आभा को और बढ़ाता है
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे। जहां-जहां यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया।
बताया जाता है कि कामाख्या देवी का मंदिर 22 जून से 25 जून तक बंद रहता है। माना जाता है कि इन दिनों में माता सती रजस्वला रहती हैं। इन 3 दिनों में पुरुष भी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते
कहते हैं कि इन 3 दिनों में माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है, जो 3 दिनों में लाल रंग का हो जाता है। इस कपड़े को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। इसे ही प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है।
मंदिर की खास बात यह है कि यहां न तो माता की कोई मूर्ति है और न ही कोई तस्वीर। बल्कि यहां एक कुंड है, जो हमेशा ही फूलों सें ढंका हुआ रहता है। इस मंदिर में देवी की योनी की पूजा होती है। आज भी माता यहां पर रजस्वला होती हैं।
इस मंदिर में यह मान्यता प्रचलित है, कि जो भी बाहर से आये भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन कर लेते हैं उनको सांसारिक भवबंधन से मुक्ति मिल जाती है। यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए भी जाना जाता है।
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