अपने आप खुलता और बंद होता है श्रीकृष्ण का ये मंदिर, आज तक नहीं खुल पाया चमत्कार का ये रहस्य

यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प के अद्वितीयता के लिए प्रसिद्ध है। इसे शानदार और सुंदरतापूर्वक निर्मित किया गया है, जो प्राचीन भारत की उत्कृष्ट शिल्पकला का प्रदर्शन करता है। इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 170 फीट है

द्वारकाधीश मंदिर पर लहराता झंडा दिन भर में पांच बार बदल जाता है उस झंडे पर चंद्रमा और सूर्य बनाए गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य और चंद्रमा भगवान से कृष्ण के प्रतीक है

द्वारका स्थित जगत मंदिर में अब प्रतिदिन छह ध्वजा चढेंगी। मंदिर प्रशासन ने बिपरजॉय चक्रवात के बाद लिए गए अस्थायी फैसले को हमेशा के लिए लागू करने का फैसला किया है।

इतिहासकारों का मानना है कि द्वारकाधीश मंदिर को श्रीकृष्ण के पोते ने बनवाया था। अनुमान लगाया जाता है कि ये मंदिर करीब 2500 साल पुराना है।

वहीं, मंदिर पर चढ़ने वाला ध्वज 52 गज का होता है। इसके पीछे भी कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि 12 राशि, 27 नक्षत्र, सूर्य, चंद्र, 10 दिशाएं, और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 हो जाते हैं। इसलिए ध्वज को 52 गज का रखा जाता है।

बता दें कि ये मंदिर पांच मंजिल का है, जो कि केवल 72 स्तंभों पर टिका है। इसके अलावा मंदिर को बनाने के लिए केवल चूना, पत्थर और रेत का ही इस्तेमाल किया गया है।

वहीं मंदिर में दो मुख्य द्वार हैं। मंदिर का जो मुख्य प्रवेश द्वार है, उसे मोक्ष द्वार और मुक्ति का द्वार भी कहा जाता है। वहीं दूसरे द्वार को स्वर्ग द्वार और स्वर्ग का द्वार कहा जाता है।

श्रीकृष्ण की भक्त मीरा बाई का नाम तो आपने सुना ही होगा। वो हर समय श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहती है। कहा जाता है कि मीरा बाई इसी मंदिर में मौजूद श्रीकृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गई थीं

द्वारका भगवान कृष्ण की कर्मभूमि भी कही जाती है। द्वारका का नाम सप्त पुरी में भी शामिल है। मान्यता है की द्वारका धाम की यात्रा करने से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के पोते वज्रनाथ ने करवाया था।

कहते हैं श्रीकृष्ण उत्तराखंड के सरोवर में स्नान के बाद द्वारका में अपने वस्त्र बदलते हैं, फिर ओडिशा जगन्नाथ पुरी में भोजन करते हैं और विश्राम रामेश्वरम धाम में करते हैं. इस दौरान वह भक्तों के बीच आते हैं